इमामों को वेतन देना समूची इस्लामी प्रवृत्तियों को बढ़ावा
नई दिल्ली, 26 नवंबर (आईएएनएस)। केंद्रीय सूचना आयुक्त (सीआईसी) उदय माहुरकर ने शनिवार को दिल्ली सरकार द्वारा मस्जिद में इमामों को दिए जाने वाले वेतन के खिलाफ एक आरटीआई आवेदन पर एक आदेश पारित किया।
उन्होंने आदेश में कहा, केवल मस्जिदों में इमामों को वेतन देना न केवल हिंदू समुदाय और अन्य गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक धर्मो के सदस्यों के साथ विश्वासघात करना है, बल्कि पैन-इस्लामवादी (समूची इस्लामी) प्रवृत्तियों को प्रोत्साहित करना भी है।
सीआईसी ने आदेश में कहा, जब राज्य द्वारा मुस्लिम समुदाय को विशेष धार्मिक लाभ देने की बात आती है तो इतिहास में जाना आवश्यक है। धार्मिक आधार पर भारत के विभाजन के लिए भारतीय मुसलमानों के एक वर्ग की मांग से एक धार्मिक (इस्लामिक) राष्ट्र पाकिस्तान का जन्म हुआ। पाकिस्तान द्वारा एक धार्मिक (इस्लामी) राष्ट्र बनने के बावजूद भारत ने सभी धर्मो के लिए समान अधिकारों की गारंटी देने वाले संविधान को चुना। यहां यह ध्यान देना आवश्यक है कि 1947 से पहले मुस्लिम समुदाय को विशेष लाभ देने की नीति ही थी जिसने मुसलमानों के एक वर्ग में सर्व-इस्लामिक और विखंडनकारी प्रवृत्ति को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो अंतत: देश के विभाजन की ओर ले गई।
केंद्रीय सूचना आयुक्त ने आदेश में कहा, इसलिए केवल मस्जिदों में इमामों और अन्य लोगों को वेतन देना न केवल हिंदू समुदाय और अन्य गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक धर्मो के सदस्यों के साथ विश्वासघात करना है, साथ ही भारतीय मुसलमानों के एक वर्ग के बीच पैन-इस्लामवादी प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है जो पहले से ही दिखाई दे रहा है।
आदेश में मुस्लिम समुदाय को विशेष धार्मिक लाभ देने जैसे कदमों को भी बताया गया है, जैसा कि वर्तमान मामले में उठाया गया है, वास्तव में अंतर्धार्मिक सद्भाव को गंभीर रूप से प्रभावित करता है, क्योंकि वे अति राष्ट्रवादी आबादी के एक वर्ग से समग्र रूप से मुसलमानों के लिए अवमानना को आमंत्रित करते हैं।
आगे उन्होंने कहा, अंत में इस तथ्य पर ध्यान देना उचित है कि दिल्ली वक्फ बोर्ड को दिल्ली सरकार से लगभग 62 करोड़ रुपये का वार्षिक अनुदान मिलता है, जबकि इसकी अपनी मासिक आय अपने स्वयं के स्वतंत्र स्रोतों से लगभग 30 लाख रुपये प्रति माह है। इसलिए दिल्ली में दिल्ली वक्फ बोर्ड की मस्जिदों के इमामों और मुअज्जिनों को दिए जा रहे 18,000 रुपये और 16,000 रुपये मासिक मानदेय का भुगतान दिल्ली सरकार द्वारा वस्तुत: करदाताओं के पैसे से किया जा रहा है, जो बदले में अपीलकर्ता द्वारा उद्धृत उदाहरण के विपरीत है, जिसमें एक हिंदू मंदिर के पुजारी को उक्त को नियंत्रित करने वाले ट्रस्ट से प्रति माह 2,000 रुपये की मामूली राशि मिल रही है।
इसलिए, आयोग इस मामले को राष्ट्र की एकता और अखंडता और आपसी सद्भाव के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण मानता है और संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के प्रावधानों को अक्षरश: लागू करने के लिए उपयुक्त कार्रवाई के लिए आयोग की सिफारिश के साथ केंद्रीय कानून मंत्री को इस आदेश की एक प्रति अग्रेषित करने के लिए अपनी रजिस्ट्री को निर्देश देता है।
–आईएएनएस
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