इंतज़ार पूरा, अभी बहुत कुछ अधूरा

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इंतज़ार पूरा, अभी बहुत कुछ अधूरा

अजित सिंह राठी की कलम से 

देहरादून से ढाई सौ किलोमीटर से भी ज्यादा दूर अपने हक़ में कोई फैसला होने के इंतज़ार में गैरसैण की आँखे भी पथरा सी गयी थी, लेकिन अब शायद गैरसैंण “ग़ैर” ना रहे। शायद अब पलायन रुके और भूतिया गांव आबाद हो। इस राज्य ने बीस बरस की उम्र में नौ मुख्यमंत्री देखे लेकिन पौड़ी जिले के खैरासैंण गांव निवासी मौजूदा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आज गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाकर अपना लम्बा सियासी सफर भी पूरा किया। यह अभी तक का त्रिवेंद्र का सबसे बड़ा राजनीतिक फैसला लिया। गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करके त्रिवेंद्र इस राज्य में अपनी राजनीतिक हैसियत में भी जबरदस्त इज़ाफा भी कर गए। यह फैसला त्रिवेंद्र के राजनीतिक करियर में सबसे महत्वपूर्ण माना जायेगा। इस फैसले को उन्होंने राज्य के उन आंदोलनकारियों को समर्पित किया जिन्होंने राज्य के गठन के लिए लड़ाई लड़ी और बलिदान दिया। जब विजय बहुगुणा ने 2013 में गैरसैंण में पहली कैबिनेट करके विधानसभा भवन निर्माण की घोषणा की थी, उनकी खींची लकीर आज त्रिवेंद्र ने छोटी कर दी है। क्योंकी राजनीतिक रूप से गैरसैंण के लिए सबसे पहले ठोस कदम उठाने की हिम्मत भी बहुगुणा ने ही की थी।
लेकिन आज इस बड़े फैसले के लिए त्रिवेंद्र सिंह रावत की तारीफ़ करने में न तो कोई कोताही बरती जानी चाहिए और न ही कोई कंजूसी की जानी चाहिए। उन्होंने मीडिया से कहा भी कि मैंने इस घोषणा को बहुत ही गोपनीय रखा और अपने सरकार और संगठन के सहयोगियों से चरचा तक नहीं की। सीधे सदन में जाकर घोषणा कर डाली। यह उनकी “राज” करने की नीति का हिस्सा जरूर हो सकता है लेकिन लोकतंत्र में इस तरह के फैसलों को दूसरे नज़रिये से देखा जाता है। बहरहाल कुछ भी हो फिलहाल उत्तराखंड की सियासत की तपती और छिछली जमीन पर त्रिवेंद्र ने जितनी लम्बी लकीर खींच डाली है उसे छोटा करना असंभव सा लगता है। मगर यह फैसला कहीं न कहीं देहरादून के स्थाई राजधानी बनने का दावा थोड़ा मजबूत होता दिख रहा है। इस बात से इंकार करना नासमझी ही होगी।

घोषणा के साकार होने का फ़लसफ़ा 

रेत की दीवार खड़ी मुश्किल होता है लेकिन उस पर चढ़ना और भी ज्यादा मुश्किल। जिस घोषणा से त्रिवेंद्र जमीन पर लम्बी लकीर खींचकर निकले है उस घोषणा को जमीन पर उतारना उन्हीं की जवाबदेही है। वर्ना जितनी वाहवाही आज बटोरी है उसके दुष्परिणाम आने में भी समय नहीं लगेगा। चुनाव में अभी दो साल है, इसलिए यह घोषणा चुनावी कतई नहीं है, अब तो सवाल केवल अपनी क्षमताओं के अनुरूप समयबद्ध तरीके से आगे बढ़कर अपनी बात पूरी करने का है। देश में जम्मू कश्मीर में अभी तक दो राजधानियों का कॉन्सेप्ट है। वहां सरकार छह महीने जम्मू से तो छह महीने श्रीनगर से चलती है। जब सरकार जम्मू से श्रीनगर शिफ्ट होती है तो करोड़ो रूपये खर्च होते हैं, वहां पर दोनों स्थान पर राजभवन, मुख्यमंत्री और तमाम मंत्रियो के और सभी ब्यूरोक्रेट्स के आवास और दफ्तर है। जिस दिन सरकार शिफ्ट होती है तो जम्मू और श्रीनगर के रूट को आमजन के लिए प्रतिबंधित होता है। सचिवालय में समीक्षा अधिकारी से लेकर मुख्य सचिव तक सभी अधिकारी कर्मचारी शिफ्ट होते है। हिमाचल और महाराष्ट्र में राजधानी से अलग केवल विधानसभा का सत्र आयोजित होता है। इसलिए जो कांसेप्ट आज समर कैपिटल का उत्तराखंड में आया है वो जम्मू कश्मीर पैटर्न है और यदि इससे कुछ कम हुआ तो घोषणा पर सवाल तो उठेंगे ही त्रिवेंद्र रावत की सियासत के इंडेक्स में जिस तरह से उछाल आया है उसी तरह से नीचे भी गिरेगा।  फ़िलहाल त्रिवेंद्र को शुभकामनाये 

वरिष्ठ पत्रकार अजित सिंह राठी के ब्लॉग से साभार

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