यूपीए-3 को हकीकत में बदलने के लिए कांग्रेस को विपक्षी एकता की बाधाएं दूर करनी होंगी
नई दिल्ली, 24 जून (आईएएनएस)। साल 2024 के महत्वपूर्ण लोकसभा चुनावों के लिए समान विचारधारा वाले दलों को एक साथ लाने के लिए बिहार के पटना में उनकी पहली बैठक हो रही है, लेकिन कांग्रेस के सामने समाजवादी पार्टी को करीब लाने की कठिन चुनौती है। तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) एक सफल संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) 3 बनाने के लिए एकता पर सहमत होने के लिए एक ही पृष्ठ पर हैं।
कई कांग्रेस नेताओं ने राय दी है कि यूपीए-3 2004 और 2009 की तरह आकार ले सकता है और इसके लिए सभी दलों को इसे सफल बनाने के लिए व्यक्तिगत हितों को दरकिनार करके कुछ बलिदान करने की जरूरत है।
हालांकि, पार्टी को सावधानी से चलने की जरूरत है, क्योंकि समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और आप ने अतीत में और हाल के दिनों में खुलकर अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं।
कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, पार्टी अध्यक्ष खड़गे के अलावा राहुल गांधी, पार्टी महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल, रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक, अजय माकन, तारिक अनवर, दिगविजय सिंह, कमल नाथ, पवन बंसल, पी. चिदंबरम जैसे कई शीर्ष नेता शामिल हैं। निखिल सिंह, अंबिका सोनी, कुमारी शैलजा, भूपिंदर सिंह हुड्डा पुरानी पार्टी के प्रमुख खिलाड़ी हैं जो 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए विपक्षी नेताओं को एक साथ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
सूत्र ने कहा, हालांकि, पार्टी को मुख्य बाधा पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और दिल्ली और पंजाब राज्यों में झेलनी पड़ रही है, जहां तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और आप का पलड़ा भारी है।
सूत्र ने कहा कि कांग्रेस के सामने सबसे महत्वपूर्ण और राजनीतिक रूप से संवेदनशील राज्य में जूनियर पार्टनर की भूमिका निभाने की चुनौती है, जो 80 लोकसभा सांसद भेजती है।
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सिर्फ एक सीट रायबरेली ही जीत पाई, जबकि उसने अपना गढ़ अमेठी खो दिया। यहां तक कि 2022 के विधानसभा चुनावों में भी पार्टी को राज्य में मदद नहीं मिली, जहां वह केवल दो सीटों पर सिमट गई।
सूत्र ने कहा, ऐसी स्थिति में जहां कांग्रेस कमजोर स्थिति में है, अखिलेश यादव पार्टी से राज्य में जूनियर पार्टनर की भूमिका निभाने के लिए कहकर कड़ी सौदेबाजी करेंगे।
उत्तर प्रदेश के 2017 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन था और चुनाव नतीजों के बाद दोनों पार्टियों के रिश्तों में खटास आ गई थी।
सूत्र ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी भी पार्टी की आलोचना करती रही हैं, क्योंकि वह चाहती हैं कि कांग्रेस पश्चिम बंगाल में वाम दलों के साथ अपना गठबंधन छोड़ दे।
16 जून को एक सार्वजनिक बैठक के दौरान ममता बनर्जी ने कहा था कि राज्य में कांग्रेस को समर्थन देने का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि कांग्रेस ने सीपीआई (एम) से हाथ मिला लिया है।
मुख्यमंत्री ने दक्षिण 24 परगना जिले के नामखाना में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था, कांग्रेस ने कई राज्यों में सरकारें बनाई हैं। अब वे भाजपा के खिलाफ हमारा समर्थन मांग रहे हैं। हम भाजपा का विरोध करने के लिए और उन्हें समर्थन देने के लिए तैयार हैं। लेकिन उन्हें पश्चिम बंगाल में वहां हमारा समर्थन नहीं मांगना चाहिए, जहां उन्होंने सीपीआई (एम) से हाथ मिलाया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल में सीपीआई (एम), कांग्रेस और भाजपा के बीच गुप्त समझौता है।
ममता ने कहा, उनका साझा लक्ष्य सभी समझ को खत्म करना है और इसलिए उन्होंने गुप्त तरीके से हाथ मिलाया है।
सूत्र ने कहा कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के रुख और कई मुद्दों पर उनके विरोध को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस को एक अच्छी राह पर चलने की जरूरत है।
सूत्र ने कहा कि यही मामला दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप नेता अरविंद केजरीवाल के साथ भी है, जो पंजाब में कांग्रेस को सत्ता से हटाने के बाद सबसे पुरानी पार्टी से इन दोनों राज्यों में चुनाव नहीं लड़ने के लिए कह रहे हैं।
सूत्र ने कहा, हालांकि, पंजाब और दिल्ली के नेताओं की खड़गे के साथ बैठकों के दौरान कई नेताओं ने खुले तौर पर अपनी चिंता व्यक्त की कि उसे दिल्ली और पंजाब में आप के साथ किसी भी तरह का गठबंधन नहीं करना चाहिए और उसे केंद्र के अध्यादेश विवाद पर केजरीवाल का समर्थन भी नहीं करना चाहिए। पार्टी नेताओं द्वारा उठाई गई चिंताओं को देखते हुए कांग्रेस को कड़ा फैसला लेना होगा।
विपक्ष की बैठक से ठीक एक दिन पहले गुरुवार को आप ने धमकी दी थी कि अगर कांग्रेस ने अध्यादेश मुद्दे पर अपना रुख साफ नहीं किया तो वह बैठक से बाहर चली जाएगी।
सूत्र ने कहा कि आप दबाव की रणनीति अपना रही है, क्योंकि शुक्रवार को विपक्ष की बैठक से पहले आप प्रवक्ता प्रियंका कक्कड़ ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी और भाजपा के बीच समझौता हो गया है और वह इस अवैध अध्यादेश पर भाजपा के साथ खड़ी है।
केजरीवाल ने अध्यादेश विवाद पर खड़गे और राहुल गांधी से मिलने का समय मांगा था। हालांकि, कांग्रेस ने पहले कहा था कि वह इस मुद्दे पर निर्णय लेने से पहले दिल्ली और पंजाब में पार्टी की राज्य इकाइयों की राय लेगी और नेताओं के साथ भी चर्चा करेगी।
–आईएएनएस
एसजीके